नाहरगढ़ किले में रखी जयबाण तोप दुनिया की सबसे बड़ी और भारी तोपों में से एक मानी जाती है। इसका निर्माण 1720 में जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह ने करवाया था। यह तोप राजस्थान की सैन्य शक्ति और तकनीकी दक्षता का प्रतीक है। इसका नाम 'जयबाण' रखा गया, जिसका अर्थ है 'विजय का हथियार'। इसका निर्माण कच्छवाहा राजपूत शासकों ने मुगलों और अन्य शत्रुओं से सुरक्षा के उद्देश्य से करवाया था। जयबाण तोप की लंबाई 20 फीट और वजन करीब 50 टन है। यह कच्चे लोहे से बनी है। इसे 100 किलो बारूद की मदद से दागा जा सकता था और यह 35 किलो के गोले को करीब 35 किलोमीटर दूर फेंक सकती थी, जिसे उस समय की सबसे लंबी फायरिंग रेंज माना जाता था।
जयबाण तोप से सिर्फ एक बार ही फायर किया गया
इतिहासकार राजेंद्र मधुकर के अनुसार जयबाण तोप से सिर्फ एक बार ही फायर किया गया था। जब इसे पहली बार दागा गया तो इसका गोला जयपुर से 35 किलोमीटर दूर चाकसू में गिरा, जिससे वहां एक बड़ा गड्ढा बन गया। विस्फोट की आवाज इतनी तेज थी कि कई लोगों के कान के पर्दे फट गए। इसके बाद इसे दोबारा नहीं दागा गया, क्योंकि इसके संचालन में अत्यधिक धन और संसाधनों की आवश्यकता थी। इसके प्रभाव को देखते हुए इसे केवल प्रतीकात्मक हथियार के रूप में रखा गया।
पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र
वर्तमान में नाहरगढ़ किले में जयबाण तोप स्थापित है और यह पर्यटकों के लिए आकर्षण का प्रमुख केंद्र बनी हुई है। इस ऐतिहासिक तोप को देखने के लिए देश-विदेश से पर्यटक यहां आते हैं। नाहरगढ़ किले में न केवल जयबाण तोप है, बल्कि इसमें राजा-महाराजाओं की जीवनशैली की झलक भी देखने को मिलती है। यह किला राजपूत वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें एक विशाल परिसर भी शामिल है। जयबाण तोप महल की ऊपरी मंजिल पर रखी गई है, जहां पर्यटक न केवल इसका फोटोशूट और वीडियो बना सकते हैं, बल्कि इसे छू भी सकते हैं।
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