मध्य प्रदेश के मंत्री विजय शाह की टिप्पणी केवल कर्नल सोफिया कुरैशी ही नहीं, पूरी भारतीय सेना के त्याग और बलिदान का अपमान है। उन्होंने उस सेना को सांप्रदायिक रंग देने का प्रयास किया, जो किसी जाति, धर्म से परे होकर देश की रक्षा में लगी हुई है। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणियां बताती हैं कि यह मामला केवल 'जुबान फिसलने' या 'भावनाओं में बहने' का नहीं है। माफी काफी नहीं: मंत्री ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में कर्नल कुरैशी पर टिप्पणी की थी। उन्होंने नाम तो नहीं लिया, लेकिन इशारा समझने के लिए काफी था। संवैधानिक पद पर बैठे शख्स की ऐसी सोच हैरान करने वाली है। अब वह माफी मांग रहे हैं, लेकिन सवाल उनसे होना चाहिए कि यह नौबत ही क्यों आई और किस मानसिकता के तहत उन्होंने ऐसी टिप्पणी की। एकता पर चोट: पहलगाम हमले के पीछे आतंकवादियों का मकसद देश में सांप्रदायिक तनाव फैलाना था। पूरे भारत ने एकजुटता दिखाकर आतंकी मंसूबों को नाकाम कर दिया। लेकिन, मंत्री के शब्द एकता और अखंडता पर चोट पहुंचाते हैं। हाई कोर्ट ने इस खतरे को समझा और कहा कि उनकी टिप्पणी अलगाववादी भावनाओं को बढ़ावा देती है। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने नसीहत दी कि जब देश ऐसी स्थिति से गुजर रहा हो तो एक मंत्री की ओर से बोला गया हर शब्द जिम्मेदारी की भावना के साथ होना चाहिए। संस्थाओं पर हमला: अफसोस, राजनेताओं में इस भावना का अभाव कई बार दिख जाता है। वोट बटोरने के चक्कर में वे ऐसी बातें कह जाते हैं, जो मर्यादा के दायरे से बाहर होती हैं। गैर-जिम्मेदारी में वे कभी सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ कुछ कह रहे होते हैं, तो कभी सेना के खिलाफ। ये हरकतें मजबूत संस्थाओं को कमजोर करने वाली हैं। पुलिस पर सवाल: हाई कोर्ट के आदेश पर मध्य प्रदेश पुलिस ने FIR तो दर्ज कर ली, लेकिन उस पर अदालत ने जो सवाल उठाए हैं, वह भी कम चिंताजनक नहीं। जब हाई कोर्ट ने मामले का खुद संज्ञान लेकर रिपोर्ट दर्ज करने को कहा था, तो फिर यह नौबत नहीं आनी चाहिए थी, जहां उसे कहना पड़ा कि FIR ड्राफ्ट कमजोर है। इससे यही सवाल उठता है कि पुलिस कहीं मंत्री जी को बचाने की कोशिश तो नहीं कर रही। डैमेज कंट्रोल: मामले में राजनीतिक मोड़ आना प्रत्याशित है। मध्य प्रदेश BJP ने अपने प्रतिनिधिमंडल को कर्नल सोफिया कुरैशी के पैतृक घर भेजा। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने रिपोर्ट तलब की है। ये सारे कदम डैमेज कंट्रोल वाले हैं। इनसे राजनीतिक क्षति तो पूरी हो सकती है, लेकिन सेना के सम्मान पर जो चोट लगी है, उसकी भरपाई तभी हो पाएगी, जब फिर से ऐसा कोई वाकया सामने न आए।
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