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जन्म कुंडली में केतु का प्रभाव: जानें उपाय और महत्व

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जन्म कुंडली का महत्व

जन्म कुंडली ज्योतिष शास्त्र में एक महत्वपूर्ण तत्व है। यह एक ऐसा चार्ट है जो किसी व्यक्ति के जन्म के समय आकाश में ग्रहों, नक्षत्रों और राशियों की स्थिति को दर्शाता है। इसके माध्यम से व्यक्ति के अतीत, वर्तमान और भविष्य से संबंधित कई महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर प्राप्त किए जा सकते हैं। कुंडली में 12 भाव होते हैं, जिनकी अपनी विशेषताएँ होती हैं। जब किसी भाव में ग्रह उपस्थित होता है, तो उसका प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर पड़ता है।


केतु ग्रह का महत्व

ज्योतिष में नवग्रहों का उल्लेख किया गया है, जिसमें केतु भी शामिल है। यह एक छाया ग्रह है, जो मोक्ष, वैराग्य, ज्ञान और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। केतु तर्क, कल्पना, बुद्धि और मानसिक गुणों को भी दर्शाता है। यह हर 18 महीने में राशि परिवर्तन करता है, और इसके नक्षत्र गोचर भी होते हैं।


पहले भाव में केतु

यदि कुंडली के पहले भाव में केतु है, तो व्यक्ति को पत्नी के साथ संबंधों को मजबूत बनाने का प्रयास करना चाहिए। इसके अलावा, गलत कार्यों से बचना चाहिए और बच्चों की आदतों पर ध्यान देना चाहिए। पढ़ाई में लापरवाही न करें और मन की चंचलता पर नियंत्रण रखें। इस दौरान बंदरों को गुड़ खिलाना भी शुभ रहेगा।


उपाय

गणेश जी की प्रतिमा अपने घर में रखें और 'गण गण गणपतये नमः' का जाप करें।


दूसरे भाव में केतु

यदि केतु कुंडली के दूसरे भाव में है, तो व्यक्ति को अपनी वाणी पर ध्यान देना चाहिए और मां के साथ विवाद से बचना चाहिए। स्वास्थ्य का ध्यान रखें और गलत संगत से दूर रहें। ससुराल पक्ष के संबंधों को सुधारने का प्रयास करें और खर्चों पर नियंत्रण रखें।


उपाय

हर दिन अपने माथे पर हल्दी या केसर का तिलक लगाएं। कुत्ते को रोटी खिलाएं और गुरुवार या एकादशी का उपवास रखें। मंदिर में श्रमदान करें।


वीडियो देखें

यदि आप अन्य 10 भावों से जुड़े उपायों के बारे में जानना चाहते हैं, तो ऊपर दिए गए वीडियो को देखें।


डिस्क्लेमर

यहां दी गई जानकारी ज्योतिष शास्त्र पर आधारित है और केवल सूचना के लिए प्रस्तुत की गई है।


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