लाइव हिंदी खबर :- महाभारत ने कई महान योद्धाओं और विद्वानों को जन्म दिया है, जो जीवन के गूढ़ अर्थों से लेकर वास्तविकताओं तक की व्याख्या करते हैं। इनमें से एक प्रमुख विद्वान थे विदुर, जिनकी नीतियों और विचारों को लोग अपने जीवन में अपनाते हैं। विदुर ने धर्म, कर्म, सुख-दुख, स्त्री-पुरुष, स्वर्ग-नर्क, गुण और अवगुण जैसे विषयों पर गहन विचार किए हैं। वे हस्तिनापुर के प्रधानमंत्री थे और अपनी न्यायपूर्ण सलाह के लिए प्रसिद्ध थे। उनके विचारों का महत्व आज भी उतना ही है जितना उस समय था।
महाभारत ग्रंथ में विदुर के विचारों का प्रमाण मिलता है। विदुर कौरवों और पांडवों के चाचा थे और धृतराष्ट्र तथा पांडु के भाई थे। उनका जन्म धृतराष्ट्र और पांडु से पहले हुआ था, लेकिन सबसे बड़े होने के बावजूद उन्हें कभी राजपद नहीं मिला। विदुर की कहानी इतनी विस्तृत है कि इसे संक्षेप में नहीं बताया जा सकता। आज हम जानेंगे कि विदुर ने मृत्यु से पहले भगवान श्रीकृष्ण से क्या अंतिम इच्छा व्यक्त की थी।
विदुर की अंतिम इच्छा मृत्यु से पहले विदुर ने श्रीकृष्ण से वदरान मांगा
यह घटना उस समय की है जब महाभारत का युद्ध चल रहा था। विदुर श्रीकृष्ण के पास गए और अपनी अंतिम इच्छा व्यक्त की। उन्होंने कहा, 'हे प्रभु, मैं इस धरती पर हो रहे इस भयंकर युद्ध को देखकर बहुत दुखी हूं। मेरी मृत्यु के बाद मैं चाहता हूं कि मेरा कोई भी अंश इस धरती पर न रहे। इसलिए, मैं आपसे निवेदन करता हूं कि मेरी मृत्यु के बाद मुझे न जलाया जाए, न दफनाया जाए, और न ही जल में प्रवाहित किया जाए।'
उन्होंने आगे कहा, 'प्रभु, मेरी मृत्यु के बाद मुझे कृपया सुदर्शन चक्र में परिवर्तित कर दें। यही मेरी अंतिम इच्छा है।' श्रीकृष्ण ने उनकी इस इच्छा को स्वीकार किया और आश्वासन दिया कि उनकी मृत्यु के बाद वह इसे पूरा करेंगे।
महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था। कुछ दिनों बाद, पांचों पांडव विदुर जी से मिलने वन में पहुंचे। युधिष्ठिर को देखकर विदुर ने प्राण त्याग दिए और वे युधिष्ठिर में समाहित हो गए।
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