जब हम कहते हैं कि परमात्मा की अनुभूति केवल आंखों से देखी नहीं जा सकती, तो इसका मतलब यह है कि ईश्वर की मौजूदगी एक शारीरिक अनुभव नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और हृदय की गहराई से महसूस की जाने वाली सत्यता है। दुनिया में हर धर्म और आध्यात्मिकता की यही सच्चाई है कि ईश्वर एक ऐसी सत्ता है जिसे केवल मन, हृदय और आत्मा की आंखों से देखा जा सकता है।
आंखों का काम है भौतिक जगत को देखना, लेकिन परमात्मा का स्वरूप उससे परे है। वह न तो कोई रूप है, न कोई रंग, न कोई आकार। इसलिए आंखें भले ही उसे देख न सकें, परंतु हृदय और आत्मा की आंखें उसकी अनुभूति कर सकती हैं। यही ब्रह्म की अनुभूति है – एक ऐसी दिव्य अनुभूति जो मन को शांति, आत्मा को प्रकाश, और जीवन को उद्देश्य प्रदान करती है।
ब्रह्म की अनुभूति का रहस्य
हिंदू दर्शन के अनुसार ब्रह्म वह अनंत, शाश्वत और सर्वव्यापी सत्य है, जो हर चीज़ में व्याप्त है। भगवद् गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि जो लोग ईश्वर की आत्मा को हृदय में धारण करते हैं, वे वास्तव में उसे जानते हैं। यह ज्ञान भौतिक इंद्रियों से प्राप्त नहीं होता, बल्कि आंतरिक चेतना से होता है।
जब व्यक्ति अपने मन को शुद्ध करता है, सांसारिक मोह-माया से ऊपर उठता है और आत्मा के प्रकाश में उतरता है, तभी वह ब्रह्म की अनुभूति कर सकता है। यह अनुभव आत्म-ज्ञान की यात्रा है, जिसमें ध्यान, साधना और आत्म-निरीक्षण का विशेष महत्व है।
ध्यान और साधना से बढ़ती है ईश्वर की अनुभूति
ध्यान, प्रार्थना और साधना के माध्यम से हम अपने अंदर के शोर-शराबे को शांत कर परमात्मा के प्रति अपनी आंतरिक भावनाओं को जागृत कर सकते हैं। जब हम अपने भीतर के चित्त को स्थिर करते हैं, तभी ब्रह्म की उपस्थिति महसूस होती है। यह अनुभूति ऐसी होती है, जो शब्दों में व्यक्त नहीं की जा सकती, लेकिन वह मन को सुकून, प्रेम और ऊर्जा से भर देती है।
इस अनुभूति में व्यक्ति को यह समझ आता है कि वह केवल एक शरीर या मन नहीं है, बल्कि वह ब्रह्म के साथ एक है। यह अहसास उसके जीवन के हर पहलू को प्रभावित करता है – तनाव कम होता है, भय मिट जाता है और जीवन के प्रति दृष्टिकोण सकारात्मक बनता है।
परमात्मा की उपस्थिति हर जगह है
ब्रह्म को हम मंदिरों या धार्मिक स्थलों में खोजते हैं, लेकिन असल में वह तो हर जगह है – पेड़-पौधों में, नदियों में, पहाड़ों में, और सबसे बड़ी बात, हमारे हृदय में। यह दर्शन हमें सिखाता है कि ईश्वर की खोज बाहर नहीं, बल्कि अंदर करनी चाहिए।
जो लोग आत्मा के इस प्रकाश को अनुभव कर पाते हैं, वे हर परिस्थिति में संतुलित रहते हैं, उनका मन प्रफुल्लित रहता है, और वे जीवन के उतार-चढ़ाव में भी स्थिर रहते हैं। यही है ब्रह्म की अनुभूति का असली रहस्य।
निष्कर्ष
जब आंखें न देख पाएं, तब भी हृदय से परमात्मा का अनुभव करना संभव है। यह अनुभव हर किसी के लिए खुला है, बशर्ते वह अपने भीतर की यात्रा करे, मन को शुद्ध करे और अपने आत्मा से जुड़ने का प्रयास करे। ब्रह्म की अनुभूति वह अमूल्य धन है जो जीवन को सार्थक बनाती है और हमें सच्चे सुख और शांति की ओर ले जाती है।
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