शक्ति और साधना का महान पर्व 'नवरात्रि' भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान रखता है। यह पर्व देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना का महोत्सव है। नवरात्रि के दौरान श्रद्धालु उपवास रखते हैं, दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं और विशेष पूजा-अर्चना द्वारा देवी को प्रसन्न करते हैं। इस व्रत और अनुष्ठान के पीछे एक अत्यंत पावन और प्रेरणादायक कथा प्रचलित है, जिसे 'श्री दुर्गा नवरात्रि व्रत कथा' कहा जाता है।
व्रत कथा का प्रारंभ:
पुराणों के अनुसार एक समय पृथ्वी, स्वर्ग और पाताल तीनों लोकों में असुरों का अत्याचार बढ़ गया था। महिषासुर नामक एक शक्तिशाली असुर ने देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया था। देवताओं ने जब ब्रह्मा, विष्णु और महेश से सहायता मांगी, तब तीनों महाशक्तियों ने अपने तेज से एक देवी का सृजन किया, जो अनेक शक्तियों से युक्त थीं। यह देवी थीं - माँ दुर्गा।
माँ दुर्गा ने नौ दिनों तक महिषासुर और उसके सेनापतियों से घोर युद्ध किया। दसवें दिन माँ ने महिषासुर का वध कर धर्म की स्थापना की। इस कारण दशहरा या विजयादशमी के दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है।
नवरात्रि व्रत का महत्व:
नवरात्रि के नौ दिन माँ दुर्गा के नौ रूपों की उपासना की जाती है। प्रथम दिन माँ शैलपुत्री, द्वितीय दिन ब्रह्मचारिणी, तृतीय दिन चंद्रघंटा, चतुर्थ दिन कूष्मांडा, पंचम दिन स्कंदमाता, षष्ठम दिन कात्यायनी, सप्तम दिन कालरात्रि, अष्टम दिन महागौरी और नवम दिन सिद्धिदात्री की पूजा होती है। प्रत्येक दिन का विशेष महत्व और साधना पद्धति है, जो साधक को शक्ति, शांति और समृद्धि प्रदान करती है।
व्रत विधि:
नवरात्रि व्रत की शुरुआत व्रती को प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर करनी चाहिए। घर के पूजा स्थान पर गंगाजल से शुद्धिकरण के बाद कलश स्थापना की जाती है। कलश पर नारियल तथा आम के पत्तों का उपयोग कर पूजा का आयोजन होता है। इसके बाद घट स्थापना कर माँ दुर्गा का आह्वान किया जाता है। नौ दिन तक व्रती को सात्त्विक आहार लेना चाहिए और माँ दुर्गा की आराधना, दुर्गा सप्तशती या देवी महात्म्य का पाठ करना चाहिए।
श्री दुर्गा नवरात्रि व्रत कथा का श्रवण:
व्रत के दौरान 'श्री दुर्गा नवरात्रि व्रत कथा' का श्रवण करना अति शुभकारी माना गया है। कथा के अनुसार, प्राचीन काल में एक व्यापारी था जो धन-संपत्ति होते हुए भी संतान सुख से वंचित था। उसने महर्षि की सलाह पर नवरात्रि का व्रत करना प्रारंभ किया। उसकी श्रद्धा, विश्वास और भक्ति से प्रसन्न होकर माँ दुर्गा ने उसे पुत्र रत्न का वरदान दिया। इस कथा से यह संदेश मिलता है कि सच्चे हृदय से देवी की आराधना करने पर मनोवांछित फल प्राप्त होता है।
कंजक पूजन का महत्व:
अष्टमी और नवमी के दिन कन्याओं का पूजन कर उन्हें भोजन कराया जाता है। कन्याओं को माँ दुर्गा का स्वरूप मानकर पूजने से व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है। कंजक पूजन में नौ कन्याओं और एक लांगुरे (बालक) को भोजन कराना शुभ माना जाता है। उन्हें पूड़ी, चने और हलवे का प्रसाद दिया जाता है तथा उपहार भेंट कर आशीर्वाद लिया जाता है।
नवरात्रि व्रत के लाभ:
नवरात्रि व्रत से मन और शरीर दोनों की शुद्धि होती है। साधक को आत्मबल, मानसिक शांति, स्वास्थ्य लाभ और आध्यात्मिक उन्नति मिलती है। इस व्रत से न केवल सांसारिक सुख-संपत्ति मिलती है, बल्कि मोक्ष मार्ग भी प्रशस्त होता है। यह व्रत जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है और नकारात्मक शक्तियों का नाश करता है।
उपसंहार:
श्री दुर्गा नवरात्रि व्रत कथा हमें यह सिखाती है कि श्रद्धा, भक्ति और तपस्या के बल पर असंभव भी संभव हो सकता है। माँ दुर्गा की कृपा से साधक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है। अतः हर भक्त को नवरात्रि के इस पावन अवसर पर माँ दुर्गा का व्रत कर श्रद्धा पूर्वक कथा श्रवण एवं पूजन करना चाहिए।
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